भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लाभ कहा कंचन तन पाये / ललित किशोरी
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:10, 22 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ललित किशोरी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पन्ना बनाया)
लाभ कहा कंचन तन पाये।
भजे न मृदुल कमल-दल-लोचन, दुख-मोचन हरि हरखि न ध्याये॥१॥
तन-मन-धन अरपन ना कीन्हों, प्रान प्रानपति गुननि न गाये।
जोबन, धन कलधौत-धाम सब, मिथ्या आयु गँवाय गँवाये॥२॥
गुरुजन गरब, बिमुख-रँग-राते डोलत सुख संपति बिसराये।
ललितकिसोरी मिटै ताप ना, बिनु दृढ़ चिंतामनि उर लाये॥३॥