भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उसकी आवाज एक उत्सव है / रेखा चमोली

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:52, 1 जून 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रेखा चमोली |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 सुबह की हडबडी में
एक कप चाय जैसी उसकी आवाज
थकी दोपहरी में
हौले से दरवाजा खोल
हालचाल पूछती
कभी कभार
सोते हुए थपथपाती
जहाँ-जहाँ नहीं होता वो साथ मेरे
होती उसकी आवाज
खुशी में चहकती
उत्साह में खनकती
दुख और उदासी में बेचैन होती
नाराजगी में लुडकती हुयी सी
कैसे भी करके
मुझ तक पहुँच ही जाती
जब कुछ नहीं सुन पाती मैं
सुन पाती हूँ
उसकी आवाज
उसकी आवाज पहचानते हैं
मेरे कपडे ,बर्तन ,घर ,किताबें ,रास्ते
मेरे जबाब न देने पर
बतियाने लगते हैं उससे
उसे क्या पता
एक उसकी आवाज के सहारे ही
चल रही है सारी दुनिया