भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जिसने देखा कभी हृदय-दृगसे / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:49, 9 जून 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |स...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(राग भैरव-ताल त्रिताल)

 
जिसने देखा कभी हृदय-दृगसे प्रभुके अन्तस्‌की ओर।
उसके द्वन्द्व मिटे सारे, वह हु‌आ अमल आनन्द-विभोर॥
तमके सभी कारणोंका, तमका हो गया समूल विनाश।
मिला उसे आत्यन्तिक निर्मल शीतल सुखद अनन्त प्रकाश॥