भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गढ़ छोड़ रुकमण बाहर आई / हरियाणवी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:25, 13 जुलाई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |भाषा=हरियाणवी |रचनाकार=अज्ञात |संग्रह=शा...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गढ़ छोड़ रुकमण बाहर आई
चौरी तो छाई म्हारे साजना
क्यूंकर आऊं म्हारे राज बन्दड़े
आगै मेरा लाखी दादा आ डट्या
तेरे दादा कै मेरी दादी बिवादूं
चौरी नै राखां जगमगी
क्यूंकर आऊ मेरे राजा बन्दड़े
आगै मेरा लाखी ताऊ आ डट्या
तेरे ताऊ कै मेरी ताई बिवादूं
चौरी ने राखां जगमगी