भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

घर वापसी / त्रिलोचन

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:20, 5 जनवरी 2008 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

साबरमती रुकी है । इंजन बिगड़ गया है ।

ठीक-ठाक करने में कितने हाथ लगे हैं

फ़ैज़ाबाद ने ख़बर पा कर, सुना, कहा है

इंजन सुलभ नहीं है । यात्री थके-थके हैं ।


घंटा गुज़र गया, तब गाड़ी आगे सरकी

आने लगे बाग़, हरियाले खेत, निराले;

अपनी भूमि दिखाई दी पहचानी, घर की

याद उभर आई मन में; तन रहा सम्भाले ।


क्या-क्या देखूँ, सबसे अपना कब का नाता

लगा हुआ है । रोम पुलकते हैं; प्राणों से

एकप्राण हो गया हूँ, ऎसा क्षण आता

है तो छूता है तन-मन कोमल बाणों से ।


अपने आस-पास हूँ, खोया हूँ, अपने में,

जैसे बहुत बिछोही मिल जाए सपने में ।