भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गलती मैं जो कुछ बणी सो बणी / हरियाणवी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:26, 14 जुलाई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |भाषा=हरियाणवी |रचनाकार=अज्ञात |संग्रह=हर...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गलती मैं जो कुछ बणी सो बणी इब तै सोच समझ कै चाल
चोरी जारी अन्याई की कहां बनी टकसाल
बिना पड्ढाए सारे पट्ढ ग्या करम किए चंडाल
पट्टी तो तन्ने बदी की लिखी इब तैं सोच समझ कै चाल
कान पकड़ कै आगै करलै इक दिन तन्ने काल
भाई बंध तेरा कुंटब कबीला किसे की ना चालै ढाल
बणेगी तेरे जिए नै घनी इब तै सोच समझ कै चाल
धरमराज तेरे कर्म्मा की एक दिन करै संभाल
जिगर मैं लागै सेल की अणी इब तै सोच समझ कै चाल
आच्छे बुरे सब देख लिये ये दुनिआं कै ख्याल
छोड्या जा तो छोड़ दे बंदे यो ममता का जाल
अनीती तन्ने भोत करी इब तै सोच समझ कै चाल