भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ठहर बटेऊ ठहर बटेऊ के नै जाइये / हरियाणवी
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:42, 14 जुलाई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |भाषा=हरियाणवी |रचनाकार=अज्ञात |संग्रह=हर...' के साथ नया पन्ना बनाया)
हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
ठहर बटेऊ ठहर बटेऊ के नै जाइये
म्हारे बाग का मिसरी मेवा चाख कै नै जाइये
तेरे हाथ की रै माली की रोटी ना भावै
कच्चे पाक्के फल तोड़ै मनै आच्छे ना लागैं
सेठ की सिठाणी पै तेरी रोटी पुआ द्यूंगी
मांज कै नै बालटी जल नीर पिता द्यूंगी