भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ईख नलाई के फल पाई / हरियाणवी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:03, 14 जुलाई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |भाषा=हरियाणवी |रचनाकार=अज्ञात |संग्रह=खे...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ईख नलाई के फल पाई
ईख नलाई मन्ने कंठी घड़ाई
ले गया चोर बहू के सिर लाई
सुसरा तै लडूंगी पीठ फेर कै लडूंगी
आजा हे सासड़ तन्ने डंडा तै घडूंगी
जेठ तै लडूंगी दिल खोल के लडूंगी
आजा हे जिठानी तेरा धान सा छउूंगी
देवर तै लडूं घूंघट खोल कै लडूंगी
आजा हे द्यौरानी तन्नै खूटिया धरूंगी
पड़ोसी तै लडूंगी दिल खोल के लडूंगी
आजा हे पड़ोसन तन्नै पाड़ के धरूंगी
बालम तै लडूंगी महलां बैठी हे लडूंगी
आजा हे सोकन तेरा डंडा बित्ती घडूंगी