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बनती-बिगड़ती इस दुनिया में / सविता सिंह

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कहीं से नहीं आती हवा

नहीं आते सन्देश मौसम के

चिड़ियों के दिलों में जैसे सन्देह भर गए हैं

निढाल हो चुकी है पृथ्वी के घूमने की उत्तेजना

एक चुप भी नहीं है

जो बैठी हो गम्भीर कोई अर्थ छिपाए

बस बेचैनी है नितान्त अकेलेपन की

एक असह्य निनाद भीतर

बनती-बिगड़ती हुई इस दुनिया में