भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आग नहीं कुछ पानी भी दो / अभिनव अरुण
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:19, 7 अगस्त 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अभिनव अरुण |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGha...' के साथ नया पन्ना बनाया)
आग नहीं कुछ पानी भी दो
परियों की कहानी भी दो।
छोटे होते रिश्ते नाते
मुझको आजी नानी भी दो।
दूह रहे हो सांझ-सवेरे
गाय को भूसा सानी भी दो।
कंकड पत्थर से जलती है
धरा को चूनर धानी भी दो।
रोजी रोटी की दो शिक्षा
पर कबिरा की बानी भी दो।
हाट में बिकता प्रेम दिया है
एक मीरा दीवानी भी दो।
जाति धर्म का बंधन छोडो
कुछ रिश्ते इंसानी भी दो।
बहुत हो गए लीडर अफसर
ग़ालिब मोमिन फानी भी दो।