भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

समझाऊं सूं तनै क्यूं हत्यारा बनै / दयाचंद मायना

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:59, 3 सितम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दयाचंद मायना |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

समझाऊं सूं तनै क्यूं हत्यारा बनै
मत छेड़ै मनै, या गरीबां की कन्या सै...टेक

दुष्ट तू फूलां नहीं फलै, गात कोढी की तरह गलै
तेरा बलै छला, देखै मुल्क खला, दयी लंक जला
या वानर सेना सै...

फर्क सै घणी रात और दिन का, बूढ़े जवान और बचपन का
तेरे मन का भोग, ना सधै जोग, तू बड़ा लोग
या बालक कन्या सै...

तेरी अकल कित चरण गई, कित हाण्डै सै बही-बही
लई आँख मीच, रहा जाड़ भींच, जिसनै कहो सो नीच
हिन्दुओं की घिन्या सै...

सतगुरु मुंशी सत के बंध, तोड़ दे मूर्ख मतीमंद
दयाचन्द गाकै, कह समझाकै, इब पड़ै जाकै
अर्थी का बना सै...