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बड़े प्रेम से मिलना सबसे / दयाचंद मायना

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बड़े प्रेम से मिलना सबसे, करके मीठी बात रे
न जाने किस भेष में मिलज्या, ईश्वर कै के जात रे...टेक

ये संसार हरि का बगीचा, कोए पेड़ ऊँचा कोए नीचा
सब में नीर एकसा सींचा, हर नै अपने हाथ रे

उसके रंग अनूप बावले, कहीं रैयत कहीं भूप बावले
कहीं सर्दी, कहीं धूप बावले, कहीं दिन कहीं रात रे...

क्यूं नफरत करता मनुष्यां से, खोया जागा नाम जहां से
बड़े-बड़े चले गए यहाँ से, थारी क्या औकात रे...

जो कुछ मुख से कह ‘दयाचन्द’, ईश्वर सारी लह ‘दयाचन्द’,
तू छुपकै कित रहै ‘दयाचन्द’ कर राम हवाले गात रे...