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बेटे के ब्याह मुकलावे की / दयाचंद मायना

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बेटे के ब्याह मुकलावे की, खुशी घणी हो मां कै
हामनै भी सुख होज्या, कारक बहू लिया कल जाकै...टेक

बेटे बिन हो कुल सूना, बहू बिना सूना डेरा
या जगह पवित्र होज्यागी, दे करा बहू का पां फेरा
तू तै जाकै बहू लिया, घरां आकै ठाठ देख मेरा
बहू का तोल अलग धर दूंगी, गून्द घल दूंगी तेरा
दोनू बख्तां बेल्ला भर-भर, खाइए खुराक दबाकै...

सब क्याहे की मौज मेरै, एक घर में ख्याल बहू की
तड़कैे जाकै लिया बेटा, चाहना फिलहाल बहू की
हथणी कैसी मस्त जवानी, हो सै चाल बहू की
इन्द्रासन सा उतरज्या, जब बाजै पायल बहू की
गंगा जी सी न्हालूंगी, बहुअड़ के दर्शन पाकै...

आगे की आगै देखी जा, इब सै ख्यास बहू की
दिवे तै भी बाध चांदना, हो रुजनास बहू की
मेल जोल तै रहा करैगी, जोड़ी सास बहू की
मेरा सब तरिया मन भरा हुआ, एक बाकी प्यास बहू की
तेरी माता की प्यास बुझा दे, अमृत जल बरसा कै...

जिस दिन आज्या बहू तेरी, म्हं भेष दूसरा धारूंगी
मैं मैले म्हं भेष रहूं, पर उसने रोज सिंगारूंगी
कह दयाचन्द तन, मन और धन, सब कुछ उसपै वारूंगी
तू सदा सुहागण रह बेटी, न्यू कह कै पुचकारूंगी
डोले म्हं तै तारूंगी, मैं गीत बधावे गाकै...