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लिखी लड़ाई कश्मीर की / दयाचंद मायना

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लिखी लड़ाई कश्मीर की, मेरे बालम की चिट्ठी म्हंकृटेक

तौब दनादन फै करै सैं, छिड़ी लड़ाई पहाड़ां म्हं
फूँक दिए घर, गाम, झोंपड़े, आग गली गितवाड़ां म्हं
खाइयां म्हं के घायल पड़े और लाश सड़ी सै झाड़ा म्हं
बुरी दशा सै मर्द बीर की, छमब-छित्तर की घट्टी म्हं...

शाम सवेरे, सिखर दोपहर, खून-खराबा हो सै हे
खाइयां पर कै टैक दरड़ दे, चिकलीं दाबा हो सै हे
कई-कई ब्रिगेड़ डिविजन, पूरा राबा हो सै हे
उड़ै लिखी बणै तकदीर की, इतनी आलम कट्ठी म्हं...

पाकिस्तान साथ म्हं चीन, दूजा खागड़ छिड़ग्या हे
हरियाणा पंजाब म्हारा, सारा बागड़ छिड़ज्या हे
बुझै कोन्या आग सहज सी, पूरा रागड़ छिड़ज्या हे
ना डेट लिखी आखीर की, दिन जां झगड़े पट्टी म्हं...

खूब बहादुरी दिखलाई सै, मेरी नणद के भाई नै
पाकिस्तानी पाँच मार दिए, एकले बलदाई नै
भाईयाँ की सूं जणू आज देखलूं, फौज के सिपाई नै
‘दयाचन्द’ ना आस शरीर की, तन मिलना है मिट्टी म्हं...