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दारू जो पीवै साजन / दयाचंद मायना
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दारू जो पीवै साजन, थोड़े दिन जीवै साजन
देखे जी देखे हामनै, बहोत से शराबी
माया जा और काया की खराबी...टेक
मान-मान पिया घर उजड्ग्या
फूंक दिया खून तेरा, भीतर सड़ग्या
पी-पी दारू पीला पड़ग्या, उड़ग्या रंग गुलाबी...
करड़ रही ना, गई नरमा मैं
सुण-सुण उल्हाणे, मरी शरमां मैं
बड़े-बड़ां की इन कर्मां म्हं खोई गई नवाबी...
यो सै काम पिया, जूत लातां का
मान घटावै मत पिता-मातां का
सुण-सुणकै, मेरी बातां का, लाले जोड़ हिसाबी...
‘दयाचन्द’ नै बात चुभोदी
माणस-माणस के भीतर गोदी
खोटे ऐब नशे नै खोदी, म्हारे हरियाणे की आबी...