भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बाउ रे बात की / कालीकान्त झा ‘बूच’
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:30, 28 सितम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कालीकान्त झा ‘बूच’ |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पन्ना बनाया)
बाउ रे बात की?
दूध खाइ छाल्ही नहि
दही खाइ बेलसि
पीबो मे स्वादे नहि -
घोंटि हपसि-हपसि!
बाबूजी सुनिये ली
लोहियाक घेंट काटि
भरिभरि मटकुरी
ओहि मे ढारि ढारि दधि केर मूरी!
दफ्तर मे अहाँ लीन
रही आनि अंगना
महना मे घोंटि घोंटि
बजबैछ कंगना
माइकेर नेंत खोंट
भेलि आब चोरनी
अहूँ आब पेट काटि
हैब घरजोरनी
अहाँ सँ माइनस भेल
प्लस भेल हंडीसँ
बाबूजी साखि गेल
आँगनक मंडी सँ...