भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

टाव टाव / दीनानाथ ‘नादिम’

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:28, 11 नवम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दीनानाथ ‘नादिम’ |अनुवादक=सतीश ‘व...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

काठ का एक टुकड़ा
सफ़ेदे पर का कौआ ले उड़ा
सफ़ेदे पर जा बैठा
और पेड़ की
सबसे ऊँची फुनगी पर उसको
बड़ा सँभाल कर रखा
इतने काठ के उस टुकड़े को
कूडे़ के ढेर पर गिरा गई
उधर तूत पर बैठे कौए ने काठ को तुरंत खोज लिया
अँधेरे में ही उसे फिर ऊपर ले गया
और उसे खोखर में छुपा के रख लिया
वर्षा की बौछार हुई
टुकड़ा फिर नीचे गिर गया
चिनार से एक कौआ आया और उसे
बीच रास्ते से उठा लिया
और चुपचाप पत्तों को थमा दिया
अब देखना है कि कब तलक उसे
हवा टिकने देगी वहाँ
न लड़की का टुकड़ा कहीं ठहर पा रहा है
न ही कहीं कोई नीड़ बन पा रहा है
प्रातः से हम केवल सुन रहे हैं:
काँय- काँय काँय- काँय।