भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बुलावा / नाजी ‘मुनव्वर’
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:42, 12 नवम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नाजी ‘मुनव्वर’ |अनुवादक=अब्दाल म...' के साथ नया पन्ना बनाया)
घने मकानों से होते हुए मैं
नए, किराये के कमरे में गया
वह स्टोव जला रही थी,
मैंने धीरे-से आलू, प्याज़ और
मिट्टी का तेल ताक पर रख दिया।
आ गए़......? <ref>उसने पूछा</ref>
मैं चौंक उठा।
कौन....?
वह उठ खड़ी हुई
जेैसे हम दोनों रँगे हाथों पकड़े गए हों
मैं ताक की ओर चला गया
ताकि भाग सकूँ
मगर उससे पहले ह ीवह
जा चुकी थी।
शब्दार्थ
<references/>