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स्वागत ओ ऋतुराज / शशि पाधा

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बौराई अम्बुआ की डाली
कोयलिया सुर साध रही
अँखुआई हर बगिया क्यारी
पुरवैया निर्बाध बही
किरणों से लिख दिया धूप ने
स्वागत ओ ऋतुराज।

मौसम ने फिर गठरी खोली
धानी चुनरी, पीली चोली
बेल कढ़ा सतरंगी लहंगा
धरती की फिर भर दी झोली
कलियों से लिख दिया धरा ने
स्वागत ओ ऋतुराज।

बिन पँखों के उड़ती फिरती
महुए की मदमाती गंध
भंवरों ने गुनगुन के स्वर में
किया कली से नव अनुबंध
खुश्बू से लिख दिया हवा ने
स्वागत ओ ऋतुराज।

धरा गगन की मिलन रेख पर
सूरज कुछ पल देर रुका
चंचल लहरों को छूने को
चन्दा बारम्बार झुका
तारों से लिख दिया साँझ ने
स्वागत ओ ऋतुराज!