भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं तो तेरी जन्म-जनम की चेरी / स्वामी सनातनदेव

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:29, 7 जनवरी 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=स्वामी सनातनदेव |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

राग रागेश्वरी, तीन ताल 10.8.1974

मैं तो तेरी जनम-जनम की चेरी।
कहा कामना करों प्रानधन! मैं तो सबहि भाँति नित तेरी॥
जो मनवावै जो करवावै वही नित्य नियमित कृति मेरी।
अपनो अपने में न लगत कछु, प्रीतम! मैं कठपुतली तेरी॥1॥
जीऊँ सदा जिवाई तेरी, तेरी मति ही है मति मेरी।
तोसों भिन्न नहीं कछु भी मैं, जान न परत कहा मैं तेरी॥2॥
तेरो सुख ही है मेरा सुख, सुगति कुमति भी कोउ न मेरी।
ज्यों चाहे त्यों ही मोकों रख, मैं तो तेरी रुचिकी डेरी॥3॥
तेरो ही सब कछु है प्यारे! है बस एक लालसा मेरी।
अपनी ही करि सदा मानियो-यामें कबहुँ न आवै फेरी॥4॥