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जिन्दगी क्या है / भास्करानन्द झा भास्कर
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गमों के बीच भंवर में
कुछ गमखोर भी
सुन्न हो जाते हैं गम खाकर,
आशा की कुछ किरणें
जब फ़ूटतीं हैं मन के अन्दर
तब और बढ जाता है
जिन्दगी जीने का जज्बा...
खुशियों के समन्दर में
कुछ गोताखोर भी
बेसुध हो जाते हैं थककर,
गम के कुछ बूंद
जब पड़ते हैं उन पर
तो दुगुना हो जाता है
खुशियों का सुन्दर एहसास ...
जिन्दगी क्या है
हर्ष-विषाद मिश्रित अनुभूति है
अवसाद मात्र क्षणिक है,
संयमित भाव चेतना की
उदात्त सहज सम्यक परानुभूति है…