भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जरा सोच के देखो! / भास्करानन्द झा भास्कर

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:23, 11 जनवरी 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भास्करानन्द झा भास्कर |अनुवादक= |...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

न चाहते हुए भी
निकल जाती हैं कुछ बातें
अनायास ही
जो नहीं निकलनी चाहिए
इस नन्हे दिल से
क्योंकि…
अपनत्व के समन्दर में
खींच नहीं पाता हूं मैं
सीमा की रेखाएं
जड़ - जंगम
मर्यादा का कोई दायरा…
भले तुम्हें बुरा लगे
मुझे कुछ भी बुरा नहीं लगता
मैं जानता हूं कि
यह गलत है लेकिन
मैं यह भी जानता हूं कि
मैं गलत नहीं हूं…
तुम्हारे पास है
सच्चाई का साफ़ आइना
जिसमें उतार कर
तुम देख लेना मुझे
मगर प्यार से...
मैं जैसा हूं असल में
वैसा ही नजर आउंगा तुम्हें!