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वाकी वळेण नद्दी बहे म्हारी सई हो / निमाड़ी

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

वाकी वळेण नद्दी बहे म्हारी सई हो,
सेळा जामुण की रे छाया।।
व्हाँ रे बालुड़ो पाती तोड़ऽ
रनुबाई डुबी-डुबी न्हावऽ।
न्हावतज् न्हावतज् धणियेरजी नऽ देख्यो,
कसी पत दीसो हो जवाब।।
हाथ जोड़ी नऽ सीस नवां म्हारी सई हो,
नैणां सी दीसां जवाब।।