भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गरब करे सोई हारे / बुन्देली

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:43, 23 जनवरी 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=अज्ञात }} {{KKLokGeetBhaashaSoochi |भाषा=बुन्देल...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

गरब करे सोई हारे,
हरि सो गरब करे सोई हारे।
गरब करो रतनागर सागर,
जल खारो कर डारे। हरि...
गरब करे लंकापति रावण,
टूक-टूक कर डारे। हरि...
गरब करे चकवा-चकवी ने,
रैन बिछोहा डारे। हरि...
इन्द्र कोप कियो ब्रज के ऊपर,
नख पर गिरवर धारे। हरि...
मीरा के प्रभु गिरधर नागर,
जीवन प्राण हमारे। हरि...