भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बड़े जनत से पाली बारी बन्नी / बुन्देली

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:48, 27 जनवरी 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=अज्ञात }} {{KKLokGeetBhaashaSoochi |भाषा=बुन्देल...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

बड़े जनत से पाली बारी बन्नी,
अब ना राखी जाय मोरे लाल
दूध पिलाए पलना झुलाए,
हो रही आज परायी मोरे लाल।
जब से बेटी भयी सयानी,
ब्याह रचन की ठानी मोरे लाल।
कन्यादान पिता ने कीन्हा,
डोली विदा कर दीन्हीं मोरे लाल।
अंगना में बेटी रुदन मचावें,
काहे भेजत परदेश मोरे लाल।
भैया भेज हम तुम्हें बुला लें,
बाबुल करत कलेष मोरे लाल।
रहियो जनम भर सुख में बेटी,
राखियो घर की लाज मोरे लाल।