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रघुबर राजकिशोरी महल बिच खेलत रे होरी / बुन्देली
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♦ रचनाकार: अज्ञात
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रघुबर राजकिशोरी महल बिच खेलत रे होरी।
कर झटकत घूंघट पट खोलत,
मलत कपोलन रोरी। महल...
कंचन की पिचकारी घालत,
तक मारत उर ओरी। महल...
सोने के घड़न अतर अरगजा,
लै आईं सब गोरी। महल...
हिलमिल फाग परस्पर खेलत,
केसर रंग में बोरी। महल...
अपनी-अपनी घात तके दोऊ,
दाव करत बरजोरी। महल...
कंचन कुँअरि नृपत सुत हारे,
जीती जनक किशोरी। महल...