भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सरजू के तीर चलो गोरी / बुन्देली
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:35, 30 जनवरी 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=अज्ञात }} {{KKLokGeetBhaashaSoochi |भाषा=बुन्देल...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
♦ रचनाकार: अज्ञात
भारत के लोकगीत
- अंगिका लोकगीत
- अवधी लोकगीत
- कन्नौजी लोकगीत
- कश्मीरी लोकगीत
- कोरकू लोकगीत
- कुमाँऊनी लोकगीत
- खड़ी बोली लोकगीत
- गढ़वाली लोकगीत
- गुजराती लोकगीत
- गोंड लोकगीत
- छत्तीसगढ़ी लोकगीत
- निमाड़ी लोकगीत
- पंजाबी लोकगीत
- पँवारी लोकगीत
- बघेली लोकगीत
- बाँगरू लोकगीत
- बांग्ला लोकगीत
- बुन्देली लोकगीत
- बैगा लोकगीत
- ब्रजभाषा लोकगीत
- भदावरी लोकगीत
- भील लोकगीत
- भोजपुरी लोकगीत
- मगही लोकगीत
- मराठी लोकगीत
- माड़िया लोकगीत
- मालवी लोकगीत
- मैथिली लोकगीत
- राजस्थानी लोकगीत
- संथाली लोकगीत
- संस्कृत लोकगीत
- हरियाणवी लोकगीत
- हिन्दी लोकगीत
- हिमाचली लोकगीत
सरजू के तीर चलो गोरी,
जहाँ राजकुंअरि खेलें होरी।
सखन सहित इत जनक दुलारी,
अनुज सखन संग रघुबीरा जी। जहाँ...
भरि अनुराग फाग सब गावत,
खेलत सब हिलमिल होरी। जहाँ...
केसर रंग भरे पिचकारी,
मलत कपोलन पे रोरी। जहाँ...
अपनी-अपनी घात तके दोऊ,
दाव करत बरजोरी। जहाँ...
कंचन कुंअरि नृपत सुत हारे,
जीती जनक किशोरी।
सरजू के तीर...