भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अगरसैर से आयौ दर्जी सों / बुन्देली
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:45, 11 मार्च 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |भाषा=बुन्देली |रचनाकार=अज्ञात |संग्रह=ब...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
बुन्देली लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
अगरसैर से आयौ दर्जी सों
हँस-हँस पूछें शहजादे की मैया
कहा जौ लैहो बागे की सिलाई।
अलियन कलियन रूप रूपैया
सो बागौ सिलाई की मुहर अढ़ाई।
अगरसैर से आयौ मलिया सों
हँस-हँस पूछें बनरा की चाची
कहा जौ लैहों सेहरे की बनाई।
अलियन कलियन रूप रूपैया
सो सेहरौ बनाई की मुहर अढ़ाई।
अगरसैर से आयौ गंधी सों
हँस-हँस पूछें बनरा की भौजी
कहा जो लैहौ सुरमा की बनाई
इंकन सीकन रूप रूपैया
सो सुरमा बनाई की मुहर अढ़ाई।
अगरसैर से आयौ सुनरा कौं
हँस-हँस पूछें बनरा की बुआ
कहा जौ लैहो कंठी की गुँजाई।
आनिक मानिक रूप रूपैया
सो कंठी गुँजाई की मुहर अढ़ाई।
अगरसैर से आयौ बजाज कौ
हँस-हँस पूछें शहजादे की बैना
कहा जो लैहो पीताम्बर की लाई।
ओरन छोरन रूप रूपैया
सो पीताम्बर की मुहर अढ़ाई।