भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
विधना करी देह न मेरी / ईसुरी
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:31, 1 अप्रैल 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |भाषा=बुन्देली |रचनाकार=ईसुरी |संग्रह= }} {{KKC...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
बुन्देली लोकगीत ♦ रचनाकार: ईसुरी
विधना करी देह न मेरी,
रजऊ के धर की देरी।
आवत जात चरन की घूरा
लगत जात हर बेरी।
लागी आन कान के ऐंगर,
बजन लगी बजनेरी।
उठत चात अब हाट ईसुरी
बाट भौत दिन हेरी।