भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बादल / दिविक रमेश
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:03, 10 मई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिविक रमेश |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatBaa...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
क्या खोया है
बादल का जो
इतना गरज रहा है सब पर।
जाने क्या वह
ढूँढ़ रहा है
एक अनूठी टार्च जलाकर।
अरे-अरे क्यों
रोते हो तुम
ढुलकाकर यूँ आँसू बादल।
तुम तो अच्छे
अच्छे बच्चे
क्यों रोते फिर ऐसे पागल।।