Last modified on 17 जून 2015, at 17:22

अंतिम पुष्प / मुकुटधर पांडेय

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:22, 17 जून 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुकुटधर पांडेय |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem>...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

फूल तू झूल रहा एकाकी
साथी तरु शाखा के तेरे रहे न कोई बाकी
छिटकी चारु-चन्द्रिका चहुँ दिशि
उपवन में एकाकी
दिखलाता तू किसे निभृत में
अपनी बाकी झांकी
मस्त आप अपने में ऐसा
छिपा कहीं था साकी
बंध वृन्त से टूटेगी कब
यह डोरी ममता की।