दलित बुद्धिजीवी?
हम उन्हें पहचान नहीं सकते
न ही दे पाते उन्हें सम्मान
हम भोग रहे दासत्व
मुद्दतों से रहते आ रहे ग़ुलाम
कि हम सब सत्ताधीशों से ही हैं डरते
और सम्मान भी उन्हीं का करते
कि वैभव के तमाशे और नंगी सत्ता को ही
हम पूजते— उनके ही आज्ञाकारी होते—
हम होते हैं प्रभावित
तुच्छ आकांक्षाओं और रोटी के चन्द टुकड़ों से
क्षुद्र उपहारों या कलदारों (पैसों) —
और चुटकी भर लाभों से!