भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
टिग्गुल / हेमन्त देवलेकर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:02, 11 जुलाई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हेमन्त देवलेकर |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
फटी पतंगों के
रंगबिरंगी कग्गज को
फाड-फूड कर बनाए गए
गोल-गोल, छोटे-छोटे
टिग्गुल।
ईंधन की तरह
उनमें भरे गए पत्थर
और फेंके गए ऊँचे
आसमान में।
पत्थर तो गिर पड़े जल्द ही
किसी कक्षा में
स्थापित होने के पहले
रॉकेट के जले हुए
अवशिष्ट भाग जैसे...
...और अब
टिग्गुल आ रहा है
धीरे, धीरे, धीरे
धीरे, धीरे, धीरे
जैसे किसी दुर्गम ग्रह से
लौट रहा हो विजयी होकर
अंतरिक्ष यान-सा।
गर्मजोशी से अगवानी करने
जुटी भीड़
हो-हो रे! होय-होय!
हो-हो रे!! होय-होय!!
-लूट