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सच जीने के लिए / इमरोज़ / हरकीरत हकीर

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किसी ग्रन्थ का इक वाक् है
ज़िन्दगी सच है सच जीने के लिए
किसी न किसी अर्थ में यह वाक्
हर ग्रन्थ में शामिल है
लोग हर रोज इस वाक् को सुनते हैं
इस वाक् को पढ़ते हैं
और सुन-सुनकर सुन छोड़ते हैं
और पढ़-पढ़कर पढ़ छोड़ते हैं
यह वाक् वाक् ही रह जाता है
किसी की ज़िन्दगी नहीं बनता ...
कभी -कभी...
किसी की ज़िन्दगी प्यार-प्यार
हो जाती है सच हो जाती है
जैसे हीर की ज़िन्दगी
रांझे की ज़िन्दगी
अपने आप सच हो गई
प्यार भी सच होता है सच जीने के लिए...