भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नहीं / शेरजंग गर्ग

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:22, 14 जुलाई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शेरजंग गर्ग |संग्रह= }} {{KKCatBaalKavita}} <poem> ह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हड़बड़ नहीं, गड़बड़ नहीं,
जल्दी नहीं, भगदड़ नहीं।

किसने कहा, तू पढ़ नहीं,
किसने कहा, तू बढ़ नहीं ?

ग़लती किसी पर मढ़ नहीं
तू खेल तो, पर लड़ नहीं।