भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चन्दू के चश्मे से / रमेश तैलंग

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:35, 14 जुलाई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश तैलंग |संग्रह= }} {{KKCatBaalKavita}} <poem> चन...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चन्दू के चश्मे से
बड़े नज़ारे दिखते हैं !

एक दिन चढ़ा लिया आँखों पर
हमने उसका चश्मा,
आठ बरस के दिखे बापू
चार बरस की अम्मा।
बूढ़े-बड़े सभी छोटे-से
प्यारे दिखते हैं  !

उस चश्मे को पहना तो
ताऊ जी ग़ुस्सा भूले,
ठंडी आइसक्रीम बन गये
जो थे आग-बबूले।
अकड़ू-अकड़ू सब उसमें
बेचारे दिखते हैं !

पता नहीं किस जादूगर से
चन्दू चश्मा लाया ?
मनहूसों की सूरत बदली
इतना रोज़ हँसाया।
धूप रात में दिखती
दिन में तारे दिखते हैं !

चन्दू के चश्मे से
बड़े नज़ारे दिखते हैं !