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हँसी, ओ हँसी! / रमेश तैलंग
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हँसी, ओ हँसी!
तू कहाँ खो गयी?
फूलों के चेहरों पर
ढूँढ़ा तुझे,
पेड़ों पर, पत्तों पर
ढूँढ़ा तुझे।
घर में भी तेरा
अता न पता,
उड़न-छू हुई तू
कहाँ पर, बता।
शहर का धुआँ
क्या तुझे खा गया?
या कोई ग़ुस्से में
डरपा गया।
जहाँ भी है जल्दी से
अब लौट आ,
उदासी ने घेरा है
हमको हँसा।