भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जाड़े की विदाई का गीत / सूर्यकुमार पांडेय

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:02, 15 जुलाई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूर्यकुमार पांडेय |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चलते-चलते जाड़ा बोला--
मैं जाता हूँ, बच्चो, टा-टा!

सुबह शाम तुम मेरे डर से,
नहीं निकल पाते थे घर से।
तनिक न डरना,
जी भर करना,
सैर-सपाटा।
मैं जाता हूँ, बच्चो, टा-टा!

पापा सदा टोक देते थे,
भैया तुम्हें रोक देते थे।
गये कहीं जब,
मम्मी ने तब,
तुमको डाँटा।
मैं जाता हूँ, बच्चो, टा-टा!

अगले साल लौट जाऊँगा,
स्वेटर-कोट साथ लाऊँगा।
जी भर दूँगा, फिर कर दूँगा,
पूरा घाटा।
मैं जाता हूँ, बच्चो, टा-टा!