भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आ गये बादल / सूर्यकुमार पांडेय
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:04, 15 जुलाई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूर्यकुमार पांडेय |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
लगे झींगुर बजाने वॉयलिन,
लो आ गये बादल।
छतों पर गिर रहीं बूँदें
कि जैसे थाप तबलों की,
कि होता तिनक-ता-ता धिन
गगन में छा गये बादल।
छमाछम बरसता पानी
कि जैसे खनकती पायल,
फुहारों से भरे हैं दिन
सभी को भा गये बादल।
लगे हैं राग में गाने
सभी तालाब के मेढक,
भरे संगीत से पल-छिन
हमें बतला गये बादल।