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मौसम जैसे जब सजता है / प्रताप सोमवंशी

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मौसम जैसे जब सजता है
दिल अंदर तक खिल उठता है

मेरे चेहरे की पुस्तक को
पढ़-पढ़ के लिखता रहता है

अपना एक पता ये रख लो
मेरे दिल में तू बसता है

दिल का गुलशन महक उठा है
जिस पल तू हंसने लगता है

चिठ्ठी भारी हो जाती है
कागज कोरा जब रखता है