भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक चेहरा जो बहुत हँसता हुआ / सिया सचदेव

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:10, 22 जुलाई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सिया सचदेव |अनुवादक= |संग्रह=अभी इ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक चेहरा जो बहुत हँसता हुआ
है मगर अंदर से वो टूटा हुआ

सांस लेती हूँ तो उठता है धुवाँ
किसने देखा दिल मेरा जलता हुआ

आओ कुछ पल तो सुकूँ से काट लें
जब तलक़ है दर्द ये सोया हुआ

ज़ख्म देने वाले तेरा शुक्रिया
सोचती हूँ जो हुआ अच्छा हुआ

सच कभी बहरूप भरता ही नहीं
सच के आगे झूठ फिर रुस्वा हुआ

मुझसे दामन सब्र का छूटा नहीं
जो रज़ा उसकी थी बस वैसा हुआ

टूट के बरसी घटा दिल पर मेरे
दिल में है तूफ़ान सा उठता हुआ

आँधियाँ हों बारिशें हों धूप हो
पाओगे जीवन मेरा ठहरा हुआ

सीख ले अब बिन मेरे जीना सिया
चल दिया उठ कर वो ये कहता हुआ