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इश्क़ से तबियत ने ज़ीस्त का मज़ा पाया / ग़ालिब
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Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:35, 24 जुलाई 2015 का अवतरण
इश्क़ से तबियत ने ज़ीस्त का मज़ा पाया
दर्द की दवा पाई, दर्द बेदवा पाया
हाले-दिल नहीं मालूम लेकिन इस क़दर यानी
हमने बारहा ढूँढा तुमने बारहा पाया
शोरे-पन्दे-नासेह ने ज़ख्म पर नमक छिड़का
आपसे कोई पूछे, तुमने क्या मज़ा पाया