Last modified on 3 सितम्बर 2015, at 13:00

सच बोलना / राजेन्द्र प्रसाद सिंह

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:00, 3 सितम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजेन्द्र प्रसाद सिंह |अनुवादक= |...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

ओ चन्दन-वन के
मलयानिल !
सच बोलना,-
सोये थे
नाग सभी,
सहसा तुम
चले तभी ?
वर्ना क्या
शाखों के साथ अभी
तुम्हें भी पड़ता
किरणों में विष घोलना ?
- सच-सच बोलना !