भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
राजू की जेब / रामेश्वर दयाल दुबे
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:48, 16 सितम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामेश्वर दयाल दुबे |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मजेदार है बड़ा खज़ाना राजू जी की जेब,
भर लेना उसमें सब कुछ ही, है राजू की जेब।
चिकना पत्थर, टूटी पैंसिल,
बटन, कील, चमकीला कागज।
छोटा शंख, तार का टुकड़ा,
इंजेक्शन की खाली शीशी।
दियासलाई की डिब्बी में,
चमकदार इमली के बीज।
प्लास्टिक की छोटी-सी थैली,
टूटा पेन, काँच की गोली।
चाकलेट का कागज नीला,
हरा पंख तोते का छोटा।
चमकदार छोटी-सी सीपी,
लाल हरे-पीले कुछ डोरे।
भरी खचाखच जेब, न उसको भाई छूना,
यह न जेब, है संग्रहालय का एक नमूना!