भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जा, सपनों से खेलना / शकुंतला सिरोठिया
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:19, 17 सितम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शकुंतला सिरोठिया |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
निंदिया की गोदी में
सो जा मेरे लालना!
सूरज भी सो गया
पेड़ सभी सो गए,
पत्तों की गोदी में,
फूल सभी सो गए।
तू भी चुप सो जा,
जा, सपनों से खेलना!
चिड़ियां भी सो गईं
चिरौंटे भी सो गए,
गोदी में छिप उनके
चुनमुन भी सो गए।
तू भी चुप सो जा,
झुलाऊं तुझे पालना!