भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तू सो जा, मेरी लाडली / उषा यादव

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:53, 17 सितम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उषा यादव |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatLori}} {{...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तू सो जा, हां सो जा, मेरी लाडली,
मेरे घर की बगिया की नन्ही कली!
सपनों की दुनिया पुकारे तुझे,
वो दुनिया बड़ी ही सुहानी-भली।
परियों के बच्चों के संग खेलना,
तू भी उनके जैसी है नाजों-पली।
नयन मूंद झट से, न अब बात कर,
सोया शहर, सोई है हर गली!