भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चिड़िया क्यों धूप में खड़ी / शकुंतला सिरोठिया
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:00, 21 सितम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शकुंतला सिरोठिया |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
ओ नन्ही चिड़िया
क्यों धूप में खड़ी,
कल तक थी घबराती
धूप से बड़ी।
पानी में भीग-भीग
नहाती थी खूब,
पर फैला बाल्टी में
जाती थी डूब।
हो गया जुकाम या-
बुखार में पड़ी?
वर्षा ने डाली थी
पानी की धार,
धरा हुई शीतल
अब न गर्मी की मार।
मीठी है धूप अब
आ गया क्वार,
ना है जुकाम मुझे
ना है बुखार।
-साभार: पराग, नवंबर, 1978, 20