भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कामी भजे शरीर को / त्रिलोक सिंह ठकुरेला
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:19, 6 अक्टूबर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=त्रिलोक सिंह ठकुरेला |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
हिन्दी शब्दों के अर्थ उपलब्ध हैं। शब्द पर डबल क्लिक करें। अन्य शब्दों पर कार्य जारी है।
कामी भजे शरीर को , लोभी भजता दाम।
पर उसका कल्याण है, जो भज लेता राम॥
जो भज लेता राम, दोष निज मन के हरता।
सुबह शाम अविराम, काम परहित के करता।
'ठकुरेला' कविराय, बनें सच के अनुगामी।
सच का बेड़ा पार, तरे अति लोभी, कामी॥