भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लाठी हो यदि हाथ में / त्रिलोक सिंह ठकुरेला
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:22, 6 अक्टूबर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=त्रिलोक सिंह ठकुरेला |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
लाठी हो यदि हाथ में, तो यह समझें आप।
दूर रहेंगे आपसे, कितने ही संताप॥
कितने ही संताप, आपदा जायें घर से।
औरों की क्या बात, भूत भी भागें डर से।
'ठकुरेला' कविराय, गज़ब इसकी कद काठी।
झुक जाए बलवान, सामने हो जब लाठी॥