भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आ मेरे साथ बैठ / असंगघोष
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:04, 13 अक्टूबर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=असंगघोष |अनुवादक= |संग्रह=समय को इ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
तू
आ मेरे साथ बैठ
बीड़ी पी
फेकड़े जला
घन उठा
पत्थर तोड़
पसीना बहा
हथौड़ा-छेनी पकड़
पत्थर तराश
बना खजुराहो की
मैथुनरत मूर्तियाँ
अथवा
प्रेम का प्रतीक ताजमहल
और
अपने हाथ कटा,
तू
आ मेरे साथ बैठ
चिलम पी
सुट्टा लगा
फिर दोनों मिलकर
साफ करते हैं
बजबजाती गंदगी
बास आए तेरे पास तक
तो बन्द कर लेना
अपनी नाक
तू
आ मेरे साथ बैठ
खालिस एकफूल की
महुआ पी
फिर पोथी-पतरा छोड़
जनेऊ उतार
उससे खाल सिल
जुट जा
मेरे साथ
चमड़ा पकाने
तू
आ बैठ मेरे साथ
जूते गाँठ
पासी बन
भंगी-चूहड़ा
और चमार बन
इन कामों में
तेरी जात!
कहाँ तेरे साथ आएगी?